________________ धर्मः / पराङ्मुखः // नैनं प्रत्यशुनं चेतो / विधेयं श्रेणिक त्वया // 64 // शुनाशुनानि चेतांसि / दि. नमध्ये विदेहिनां // जायते विस्मयोऽप्यत्र / न कर्तव्यो महीपते / / 65 / / मोदमार्गप्रपन्नस्य / वात्सव्यं तव संगतं // राजाह कुत्सितं कर्म / सुलग्नं दुर्लनं त्विदं // 66 // धर्मसर्मकार्याणि / 301 कुर्वतोऽस्य सहायकाः // स्वत एव वयं स्वामिन् / युष्मदादेशनोदिताः // 67 // इत्युक्त्वा स्वकरे कृत्वा / गबतागयमंत्रिणा // सगौरवं गृहे नीतो / रौहिणीयकतस्करः // 67 // आतिथेयों क्रियां सर्वा / पादप्रदालनादिकां // विधाय समये सोऽथ / वस्त्रैश्च परिधापितः // 6 // // भोजनांतरका ले च / विश्रांतोऽनयमंत्रिणा // निर्वेदकारणं पृष्टः / वदतिस्म यथास्थितं // 70 // अजयः प्राह जो जऽ / चित्तशुछिपुरस्सरं // प्रव्रज्याग्रहणं श्रेयः / सर्वेषां सुखकारणं // 31 // यदत्र परसंबंधि / चित्तमालिन्यकारणं // अदत्तं स्वीकृतं सर्व / तत्तस्यैव समर्पय // 12 // अज्ञातखामिकं द्रव्यं / तथा विस्मृतनायकं / / मृतनष्टधनं सर्व / तच्च राज्ञे प्रदीयतां // 13 // विशुद्यात्मा ततस्तूर्ण / कुरु धर्म यथोदितं / / प्रतिपन्नमिदं तेन / क्रियया च कृतं तं // 14 // ततोऽनय कुमारेण | कृतनि. क्रमणक्रियः // महामहोत्सवेनैष / वीरनाथेन दीदितः // 79 // ततोऽसौ श्रमणो जातो / गु. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust