________________ धर्म| तथा मद्यं पिबत्येष / यथा नो जायते मदः॥ न च बरो. विरूपाणि / चेतना नैव मुह्यते // 5 // - पीयमानेषु मद्येषु / दृहकैः सह सुंदरैः // नृत्यत्सु मदमत्तेषु / नरेषु रौहिणीयकः // 16 // अ. लीककोपमाधाय / चौरो वदति चारणं / / रे चारण दुराचार | कोऽयं जो रोहिणीयकः // 7 // श्य का माता कः पिता तस्य / मूर्खस्त्वं मूढ लक्ष्यसे.॥ नानृतं गायनं कार्य / याहि याहि ममाग्रतः। // ए // शिवशक्तिसुतं शांतं / श्यामलाकुदिसंजवं // दुर्गशक्तिं महाशक्तिं / गीतयोग्यं न गाय से // // ततश्शूर्णेन सन्मिश्रं / पायितो मंत्रिणा सुरां / तया निर्नष्टचेष्टोऽसौ / पपात जुवि चौर्यकृत् // 100 // न वक्ति श्वसिति नापि / न पश्यति न जिघति / / निषिडियसंचारो / जा तो योगीव निश्चलः // 1 // तथाविधं तकं दृष्ट्वा / मंत्रिणा निजमंदिरं // नपरिष्टाच विमानस्य / सदृशं कास्तिं पुतं // 2 // पंचवर्णमहामूख्य-वस्त्रस्यूतवितानकैः // यन्मनांसि हरत्येव / यथा स्थानं नियोजितैः // 3 // मुक्ताहाराहारैश्च / चतुर्दिक्षु विलंबितैः // हारिहीरकजालैश्च / मध्यन्ना गे च मंमितं // 4 // नानापुष्पोपहारेण / सर्वतोऽपि विराजितं / / कर्पूरागुरुसन्मिश्र-धूपगंधस मुध्धुरं // 5 // वरकस्तूरिकालिप्त—जित्तिस्थनमराकुलं / सारस्वस्तिकमालानि-लितं रत्नशा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S: Jun Gun Aaradhak Trust