________________ धर्म- मित्रगेहेषु / प्रस्तावे च प्रतीजतां // इत्येवं वर्धते प्रीतिः / प्राणिनां नववासिनां // 2 // युग्मं // चौरेण चिंतितं सोऽय-मंतिकस्थो ममांतकः / यज्ञोपितं मया नाम / पृलतोऽपि महीपतेः / / 3 / / तेनाहमर्पितो राज्ञा / बुधिगेहस्य मंत्रिणः // येन केन प्रकारेण / नाम विज्ञान हेतवे // 4 // श्य भवत्वात्मा न मोक्तव्यः / खेदोऽपि च न संगतः॥ सोढव्यं पतितं सर्व / वीरेणोन्नतचेतसा // 5 // विधिरेष करोत्येवं / नानाकारा विमंबनाः // स्वयं कृतानि कर्माणि / जुज्यंते स्वत एव हि / / 6 / / लुज्यते यविधिर्दत्ते / विधिदत्तं च पीयते // गम्यते नयते यत्र / विधिदत्ते च सुप्यते // 7 // गम्यते किं विचारेण / नान्यथा बत मुच्यते // विचिंत्यैवं ततस्तेन / प्रपन्नं मंत्रिणो वचः // 7 // ततोऽज्जयकुमारेणा-नीतः प्रीतिपुरस्सरं // स्वगृहे दापितं तस्य / विशिष्टं बृहदासनं // 7 // केनोपायेन हंतायं / निजं नाम वदिष्यति // हुं ज्ञातं मद्यपानेन / तत्र यत्नं प्रकुर्महे // 1 // मद्यापणात्ततो मद्यं / हृद्यं जनमनोहरं // ानीय च विधायोच्च-गोष्टीबंधं समंततः // 5 // जाणितोऽनयकुमारेण / चारणश्चतुराननः // त्वया गीते समारब्धे / स्तोतव्यो रोहिणीयकः // 73 // कृते तथैव तेनापि / चिंतयामास तस्करः // सोऽयं मन्नामविज्ञान हेतवे पाशकः कृतः // 4 // | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gin Aaradhak Trust