________________ धर्म नं कृत्वा / सेवकाः शेरते सुखं // 27 // कृतालीकप्रकोपेन / श्रेणिकेन प्रजापितं // सुबुधिरपि हैवत्स त्वं / तिर्बुधिखि लक्ष्यसे // 55 // यदस्य नररत्नस्य / बंधायोग्यस्य बंधनं / / तद्दुनोति म नो वत्स / मामकीनमनारतं // 60 // धनालोचितकारी हि / नरो नैव प्रशस्यते // ततो विबंधश्य नं कृत्वा / विमुंचैनं ममाग्रतः // 61 // गतोऽसौ श्रेणिकेनापि / गाढं सावेशचेतसा / / चिंतितं यः द्ययं नाम / रौहिणीयकसेशकः // 6 // सहते तदा करोम्यस्य / तीवदंडेन शिवणं // यथान्यो. ऽपि बिनेत्युच्चैः / कुर्वाणः कर्म कुत्सितं // 63 // अनयोऽपि समायातः। कृत्वादिष्टं महीनुजः // दत्तं तस्मै सुतुष्टेन / खांगलमं महीभृता / / 64 // वस्त्रादि नीतज्नीतेन / तेनापीदं प्रतीलितं // तांबूलं च स्वहस्तेन / स्वासनं चासनाय च / / 65 / / ततः संजातशंकेन / तस्करेण विचिंतितं / / अाश्चर्यमिदं जाति य-ददृष्टे कुरुते नृपः // 66 // न कृतोऽवसरः कोऽपि / न चास्योपकृतं मया // वैवाहिको न संबंधः / खाजन्यं न च तादृशं // 67 // यादरश्च महानेष / क्रियते मे महीनु. जा // महबंकापदं चेदं / विपाकोऽस्य न सुंदरः // 67 // मामयं न विजानाति / नाम च प्रकटं | मम / / तदयं जीवनोपायो / यत्वं नाम न कथ्यते // 6 // प्रणम्य नणितो राजा / तस्करेण | P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust