________________ धर्म- जनं परित्यज्य / हित्वा दुरे च इंमिकां // सुनोजनं समानीय / बुजुजेऽसौ यथेबया // 13 ॥धाः / का लदितश्च लोकेन / गत्वा वैजारपर्वते // तावदास्ते निलीनोऽसौ / यावदस्तं गतो रविः / / 14 // ततश्च पर्वतादेष / उत्ततार शनैः शनैः / / दत्वा समंततो दृष्टिं / ततो निःशंकमानसः // 15 // वीरवेषं विधायासौ / लोकमोषणवांग्या // नक्तं सुप्तेषु लोकेषु / सालमुलंध्य लीलया // 16 // प्रविश्य नगरं तूर्ण / मुषित्वां चिह्नितं गृहं // निर्जगाम तथैवासौ / तस्करो रोहिणेयकः // 17 // विनिर्विशेषकं // एवं दिने दिने तेन / कुर्वता निर्धनीकृतः // राजगृहजनः सर्वो / रातिकमुपागतः // 17 // विज्ञतो नृपतिस्तेन / देव दर्शय सांप्रत // पानीयस्थानमस्माकं / वस्तुमत्र न शक्यते // 15 // युग्मं // राझोक्तं केन कार्यण / कथ्यतां स्वप्रयोजनं // जनेनोक्तं महाराज / सावधानर्निशम्यतां // 20 // युष्मासु विद्यमानेषु / विद्यमानेषु मंत्रिषु // केनापीदं पुरं राज-ननाथमिव मुष्यते // // 1 // ततः संजातखेदेन / मिपालेन भाषितं / / कथ्यतां किं गतः कापि / जो लोका दंभ पाशिकः // 25 // श्रुत्वेदं कोट्टपालेन / विधाय करकुद्मलं // जल्पितमेष देवाह-मादेशो मम P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust