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________________ धर्मः सर्वतो रम्यं / पुरं राजगृहान्निधं // स्वर्गखममिवोत्तुंग-देववेश्मसमाकुलं // 1 // आसीत्तत्र श्रि. यां धाम | श्रेणिको नाम नृपतिः // बनव तस्य सद्बुधिः। सुप्रसिद्योऽनयानिधः // 2 // पुत्रो मंत्री च निःशेष-गुणसंदोहमंदिरं // तथा तत्रैव सबैलो। वैजारगिरिनामकः // 3 // युग्मं // नानावृदासमाकीर्णो / नानागह्वरसंकुलः // प्रोत्तुंगैः शृंगसंदोहैः / संरगगनांतरः // 4 // तत्रानेकगुहाकीर्णे / फरनिमरसंकुले // बवाशेषसत्त्वानां / सदा संतापकारकः // 5 // नानावेषधरो धीरो / धर्मवार्तावहिःकृतः॥ वसत्यलदितो लोकै-स्तस्करो रौहिणेयकः // 6 // युग्मं // माया माता जनी यस्य / मृषा हृदयवासिनी // अदत्तग्रहणं मूल-नीवी नित्यं तदापणे // 7 // अचदयं विद्यते नास्य / नापेयं किंचिदप्यहो // अगम्यं विद्यते नैव / सर्वाशी सर्ववृषकः // 7 // वा. सरे नगरस्यांत-पट्टपदध्यः॥ शनैः शनैश्चरत्येष / खंजन दीणस्वर लपन // 5 // यष्ट्यव टंगतो धूर्ती / दुःखंदुःखेन गबति // कासन्ननारतं रीणः / कष्टंकष्टेन जल्पति // 10 // जालस्थ जीर्णपट्टेन / स्थगितेकविलोचनः // बनाम हंडिकाहस्तो / गृहदर्शनकाम्यया // 11 // सधनं नि: | धनं चेद-मिदं पुंनिर्विवर्जितं // इत्यादि सकलं ज्ञात्वा / निश्चक्राम ततः पुरात् // 15 // कुभो. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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