________________ धर्मः | निह्नवकारिणः // 1 // व्याख्या-तभावादर्शनलाजनावादुत्तरो देशविरतिसविरतिलदणो धर्मो बीमा दुर्गतिनिपतांतुजातधरणप्रवणो जीवपरिणामः, यतः-दुर्गतिप्रसृतान जंतून / यस्माघारयते ततः // धत्ते चैतान शुन्ने स्थाने / तस्माधर्म इति स्मृतः // 1 // साधुश्रावकलदाणो गृहियतिस्वरूपः. 275 तस्मान्मिथ्यादृशो विपरीतदृष्टयो न संति जुषमायां साधव इति वादिनः. यतः // मूलम् ॥-न विना साधुनिस्तीर्थ / नाऽतीर्थे साधुसंगवः // समं सत्ता तयोर्गीता / सर्वझैः सर्वदर्शिनिः // 1 // व्याख्या-न विना न ऋते साधुनिर्मुनिभिस्तोर्थ संसारसागरसंतरणतरं. डकल्पं, न च नैवातीर्थ जिनांतरादौ साधुसंगवः साधुसत्ता, सममेककालं सत्ता विद्यमानता तयोः | साधुतीर्थयोर्गीता प्रतिपादिता, कैः ? सर्वज्ञैः सर्ववस्तुस्तोमविशेषवेदिभिः, सर्वदर्शिनिः समस्तवस्तुसामान्यावलोकिन्निः // 1 // ननु नवतु शुनकाले सुखमासुखमादावुलयसत्ता, सांप्रतं श्रावकैरेव तीर्थ यातीति यो मन्येत तन्मतं निरस्यन् श्लोकमाह // मूलम् // अद्यापि दुःखमाकाले / यावद्दुःप्रसहानुः // तावचरणसत्तापि / जगवडाक्य| तः स्थिता // 1 // व्याख्या अद्याप्यधुनापि दुःषमाकाले कालचक्रस्य पंचमेऽरके कियंतका वं - P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust - E