________________ * धर्मः यावदिति परमार्थः, दुःप्रसहो दुःप्रसहानिधानः प्रनुः सूरिस्तावदिति तावतं कालं चरणसत्तापि चाः | का स्त्रिसंचवोऽपि जगवडाक्यतः श्रीमन्महावीरवर्धमानम्वामिवचनास्थिता प्रतिष्टिता. // 1 // उक्तं च -दुपसंहंत चरणं / जं जणियं जगवया हं ति // प्राणाजुत्ताण मं / न हो अहुणत्ति श०० | वा मोहो // 1 // परितुलियनियबलाणं / सत्तीए जहागमं जयंताणं // संपुनच्चिय किरिया / दु. प्पसहंताण साहूणं // 2 // एवं च सति-जो नण नबि धम्मो / न य सामाश्यं न चेव क्याइं॥ सो समणसंघवशो। कायवो समणसंवेण // 3 // इह च दुःप्रसहसूविक्तव्यता एवमागमे श्रूयते, सा च मूलादारज्य कथ्यते, तद्यथा-बायालवाससहसूणि-यत्तिए सेककोडिकोमिति // गोयमवोडो कालो। एक जिणा चक्किजुयलाई॥१॥ चनप्पन्नमहापुरिसा / चोबे वरयंमि जं. ति गणनाह / / चोबारयस्स सेसे / तिवासयनवमाससेसेसु // 2 // मम सिधिगयस्स पुणो / पालगराया अवंतिनयरीए / होही तं रयणीए / सहि वरिसाई पुह ढवई // 3 // तस्स वुढीए नं. दाए / पणपन्नसयं च शेश वासाणं // मरुयाणं अठसयं / तीसञ्चिय पूसमित्तस्स // 4 // बलमितनाणुमित्ता / सही होहति वासरायाणो // नहवाहणो य राया। होही चत्तान वासाणं // 5 // / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust