________________ धर्मः / धुरो दीनः / खेदखेदितविग्रहः // नष्टचेता निरानंद-चिंतयामास मानसे // 35 // युग्मं // वरं | मृतो वरं दग्धो / वरं देशांतरे गतः॥ यो जीवति परावज्ञा-दुःखदग्धोऽपि मानवः // 35 // म रणं वा विदेशो वा / द्वयमेव मे संगतं // एवं विचिंत्य सुप्तोऽसौ / रूपा दयमुपागता // 36 // 26 | रत्नसागरसंबंधी। मेरीनांकारनीषणः / प्रनाते चलितः सार्थः / सोऽपि तेन समं गतः // 37 // कृतरदो महायो धैः / सुखावासप्रयाणकैः // दिनैः कतिपयैरेव / महाटव्यां विवेश सः // 37 // या च नानाविधैर्वृदौ-विहगैश्व विराजिता // विचरत्खजिशार्दूला / संत्रासितजगऊना // 35 // न नाश्रीखि कुत्रापि / चलचित्रोपशोजिता // अन्यत्र सिंहज्येष्टार्क-मूलमंदारराजिता // 40 // क. | चितगणोपेता / जवानीव मनोहरा // कचिजमन्महानोगः-भुजंगशतसंकुला // 41 // कचिन्महाशिवासंघ–फेत्कारसंखाकुला // कचित्प्रेतरसेवोच्चैः / सर्वलोकनयंकरा // 42 // चतुर्तिः कलापकं // स तस्यां दैवयोगेन / साजिष्टो भयातः॥ बज्राम नीषणेऽरण्ये / एकाकी कर्मयोगतः ॥शा ततः प्रचंडशुंडेन / नीषिताखिलजंतुना॥ ऊर्ध्ववालधिना तूर्ण-मितश्चेतश्च धावता / / / | वनवलीवितानानि | क्रोधावेशात्प्रनंजता / गर्जता घनशब्देन / तुंगेन च तरखिना // 4 // का P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust