________________ 167 धर्मः | कामनोगेषु सा मनः // 56 // निर्विणा कामनोगाच / सुव्रतार्यासमीपके // जग्राह विधिना दी दां / सर्वकर्मदयंकरीं // 5 // शिक्षिता विविधा शिदा / पवितं च बहु श्रुतं // प्रतप्तं च तप"" स्तीवं / पालितं च व्रतं चिरं // 23 // विधायाराधनामंते / सिधांतोक्तविधानतः॥ ततो मृत्वा सु. रो जातः / षष्टे कटपे महर्डिकः // 14 // जुक्त्वा तत्र सुखं दिव्यं / सागराणि चतुर्दश // तत. व्युत्वेह संजातो / रससारो जवानिति // 25 // श्रुत्वेमं निजवृत्तांतं / पूर्वजन्मसमुद्भवं // नरेंडो | रससारोऽपि / जातो जातिस्मरः दणात् // 26 // संवेगातिशयं विनन् / ब्रूते सूरि कृतांजलिः // संसारखासतः स्वामि-निर्विलो नितरामहं / / 57 // कृत्वा सौस्थ्यं निजे राज्ये / गृहीष्ये युष्मदं | तिके // संसारोत्तारिणी दीदां / सकलक्लेशनाशिनी // 7 // अत्रार्थे माप्रमादीस्त्व-मित्युक्ते सति सूरिणा // सूरि प्रणम्य पालो / निजमंदिरमागतः // 17 // समस्तमंत्रिसामंत-संमतेन सतां मतं // स्वराज्ये स्थापयामास / जयसारं निजांगजं // 60 // यदन्यदपि कर्तव्यं / तदशेषं वि. घाय सः // श्रुतसुंदरसूरिणा-मंते दीदां गृहीतवान् // 61 // ततस्तेनाचिरादेव / संसारजयभी. | रुणा / / गृहीता विविधा शिदा / ग्रहणासेवनानिधा / / 65 // षष्टाष्टमार्धमासादि-तपस्तप्तं सुः P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust