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________________ धर्मः / नवर्जिता // 7 // ममापि वसुधालभ्य-मत्र संपद्यते पयः // न च कुंकुमकर्पूर-श्रीखंमादि धनं का विना // 7 // अतोऽहं केवलेनापि / नोरेण परमेश्वरं // स्वपयामि ममापोह / येन धर्मः प्रजाय. ते // 7 // विचिंत्यैवं पयःपूर्ण / कुंजमादाय भक्तितः // स्नापयामास तदिवं / रोमांचांचितविग्रहा 263 // 10 // ततश्च स्थापयामास / पयःपूर्ण मनोहरं / प्रत्यग्रं मृन्मयं कुंनं / भावसारं तदग्रतः // 11 // एवं चानेकधा तत / दृष्टं दुर्गतया तया // क्रियमाणं जिनेंद्रस्य / स्नात्रं नानाविधैर्जनैः // 15 // तयापि स्नापितं तत्र / तबिंब रिशो जलैः // पूजितं च मुधालभ्यैः / कुसुमैः काननोद्भवैः // 13 // अथो निजायुषः प्रांते / दुर्गता स्त्री मृता सती // तस्मिन्नेव पुरे जाता / सिंहसेनमहीपतेः // 14 // चंद्रश्रीकुदिसंता / दुहिता कंदकंदली // रूपसौजाग्यसंपन्ना / लावण्यामृतकूपिका / / 15 // यु. ग्मं // श्रथासौ वर्धते बाला / पुष्णंती सकलाः कलाः // क्रीमान्निश्च ह्यनेकान्निः / क्रीमंती हर्षनिर्नरं // 16 // अन्यदा च जगामासौ / सखीवृंदसमन्विता // तत्रैव सर्वतो रम्ये / कानने कुंद. सुंदरे // 17 // श्तश्चेतो भ्रमंती च / नानाक्रीमापरायणा // तमेवालोकयामास / पूर्वदृष्टं जिना. लयं // 17 / / ततस्तत्र प्रविष्टासौ / तद्धिं च विलोकितं // वीदितं च चिरं कालं / स्निग्धमंथरया P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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