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________________ धर्म | त्यादिनिर्गुणग्रामैः / सर्वलोकातिशायिनिः // शत्रवोऽपि हि तेनोच्चैः / शिरःकंपं विधापिताः // 17 // / अन्यदा तत्र वर्षासु / धान्यपूर्णेषु नृतले // जद्गतेषु च नो मेघः / कथंचिदपि वर्षति // 17 // ततः शुष्यंति धान्यानि / वांति वाताः सुदारुणाः / / तपत्यर्को धरापी / द्वादशार्कसमर्गलं // 19 // 255 जलाशयेषु सर्वेषु / त्रुटयंति च पयांस्यलं // गोरूपाणि च सोदंति / विना वारि गृहे गृहे // 20 // बुदाक्रांतदेहानि / प्रियंते तानि कानिचित् // श्रासते च गृहहारे / पतितानि च कानिचित् / / // 1 // सानंदा मानसे जाता / धान्यसंग्रहकारिणः // विषणा दुर्गता लोका / जाताश्चिंतातुरा हृदि // 22 // बहुर्निदाचरो लोको / वर्धते च दिने दिने // श्रीमंतोऽपि हि नेति / निदादातुं तदर्थिनां // 23 // त्यागिनोऽपि हि ये लोकाः / सुप्रसिधा मनखिनः // तैरपि चेतसा सार्ध / हस्तः संकोचितो दृढं // 24 // मूल्यं चरितुमारब्धं / धान्यानां प्रतिवासरं // तानि दातुं न वांगंति / धान्यसंग्रहकारिणः / / 25 // यथा यथा न तादृदा / निदा गेहेषु लभ्यते // तथा तथा मनः दोजो। जातः पाखंमिनामपि // 26 // एवं हल्बोहले जाते / लोकानां दौःस्थ्यदायिनि / / सुनिदं देशमाश्रित्य / लोकेषु च पियासुषु // 27 // Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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