________________ धर्म: / केवलं गदितुं शक्य-मिदमेव समासतः // लनंते ते नराः सर्वा / लोके फुःखविलंबनाः // 16 // की प्रकृत्यैव भवत्येते / गुरुदेवतपस्विनां // प्रत्यनीका महापापा / निर्जाग्या गुणदृषकाः // 17 // स. | न्मार्गपतितं वाक्य-मुपदिष्टं हितैषिणा // केनचिन्न प्रपद्यते / महामोहेन दृषिताः // 17 // त. 252 तश्चेदं मुनेर्वाक्यं / विनिश्चित्य महीभृता // विचिंतितं निजे चित्ते / अहो सर्मदेशकाः // 17 // रंजितो हृदये राजा / सजा संतोषमागता // यथायोगं गुणस्थानं / प्रतिपद्य गृहं गता // 10 // उत्तमोत्तमनरे व्यं / नियम्य द्रियपंचकं / / नृजन्म सफलं कार्य / विजयवर्धन त्वया // 21 // - येवं सूरिभिः शिष्टे / धर्मे सर्वज्ञजाषिते // राजाह रंजितश्वांतः / संवेगातिशयं वहन / // 25 // भगवनिर्जितास्ताव-देते बाह्या मया विषः // आंतरानपि निःशेषान् / जेतुमिहामि सांप्रतं // 3 // एते च सर्वदा पूज्य–पादसेवनतत्परैः // शक्यते हि निराकर्तुं / मादृशैरत्र नान्यथा // 24 // तथाहं निजराज्यस्य / सौस्थ्यं कृत्वा यथोचितं // अथो दीदां गृहीष्यामि / पूज्या. नामंतिके प्रभो // 25 // मा प्रमादं कृथा जद्र / सर्वथात्र प्रयोजने // एवं सूरिनिरादिष्टे / ततो राजा समुचितः // 26 // गतो गेहे ततः प्रोक्तः / स्वाभिप्रायः स्वमंत्रिणां // ततश्च स्थापितो सः PP.AC.Gunratnasuri M.S. . . Jun Gun Aaradhak Trust