________________ धर्म| णितास्ताव-मध्यमानां गुणागुणाः // जघन्यनरसंबंधे / स्वरूपमधुनोच्यते // 4 // जघन्यास्ते नरा ज्ञेया / ये हृषीकवशं गताः // संप्राप्य मानुषं जन्म / करणैर्ये विनिर्जिताः // 5 // परारिरूप तां तेषां / न जानंति यतः स्वयं / / परेषामपि रुष्यति / विदुषां हितन्नाषिणां // 6 // हृषीकवर्ग: 251 संपाद्ये / पामाकंन्यनोपमे // परार्येऽपि च दुःखेपि / सुखलेशेऽतिगृष्यः॥ // स्वर्गोऽयं पर मार्थोऽयं / लब्धोऽयं मुखसागरः // अस्मानिरिति मन्यते / विपर्यासवशं गताः // 7 // ततो हार्द तमस्तेषां / प्रतिसर्पति सर्वतः // विवेकशेषकाश्चित्ते / वर्धते रागरश्मयः // 5 // प्रणष्टसत्यसद्भावा | अंधीचुतस्वबुध्यः // कुर्वतोऽनार्यकार्याणि वार्यते केन ते ततः // 10 // धर्मलोकविरुधानि / निंदितानि पृथग्जनैः // कार्याणि कुर्वतां लोकः / शत्रुन्नावं प्रपद्यते // 11 / / कुलं चंडांशविशदं / ते कुर्वति मलीमसं // यात्मीयचरितैः पापाः / प्रयांति जनहास्यतां // 1 // अगम्यगमनासक्ता / निर्मर्यादा नराधमाः // धर्कतूलादपि परं / ते जने यांति लाघवं // 13 // दुर्लना हि मनोऽभी. ष्टा / विषयाः स्त्र्यादिगोचराः // प्राणिनां हृदि वर्तते / न लज्यंते यथेप्सिताः // 14 // तदा ते * यानि दुःखानि / याश्च लोके विसंबनाः // प्राप्नुवंति न शक्यते / ता व्यावर्णयितुं गिरा // 15 // PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust