________________ धर्म गाने के प्रशंसति / रमंते सुखनिर्भराः // अन्ये शांतांतरात्मानो। निंदति विगतस्पृहाः // 7 // | तदत्र कतरो मार्गो / मादृशामिह युज्यते // न लदयामस्तच्चित्तं / संदेहमवगाहते // 73 // त स्मात्कालविलंबोत्र / युक्तोऽस्माकं प्रयोजने // नैवैकपदानिक्षेपो / विधातुमिह बुध्यते // 7 // 250 मध्यमानां भवेबुद्धिादृशी कर्मपतिः॥ यस्मादाचदते संतो। बुद्धिः कर्मानुसारिणी // // 55 // तत इंद्रियवर्ग ते / मन्यते सुखहेतुना // अनुकूले च वर्तते / किंतु नात्यंतलोबुपाः // // 6 // ततो लोकविरुधानि / नाचरंति कदाचन // पंचेंजियवशं प्राप्ता / नापायान प्राप्नुवंत्यतः // 3 // हितेनोक्ताः प्रबुध्यते / विशेषवचनस्य ते // अदृष्टदोषास्तवाक्यं / केवलं नाचरंति ते // 7 // मैत्री बालिशलोकेन / कुर्वति स्नेहनिर्जरां // लभते तदिपाकेन / रौद्रां दुःखपरंपरां // // एए // अवर्णवादं लोके च / प्राप्नुवंति न संशयः // संसर्गः पापलोकेन / सर्वानर्थपरो यतः // 100 // यदा पुनः प्रपद्यते / विदुषां वचनानि ते // याचरंति च विझाय / तदीयां हितरूपतां // 1 // तदा ते विगताबाधा / नवंनि सुखिनो नराः॥ महापुरुषसंपर्का-बनते मार्गमुत्तमं // // पंमिता व ते नित्यं / गुरुदेवतपस्विनां / बहुमानपराः संतः / कुर्वत्यर्चनवंदनं // 3 // तदेवं भ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust