________________ धर्म | दाचन // 70 // न चानुकूलं चारित्रं / नजंते विजितस्पृहाः // ततस्तऊनितैर्दोषै-न युज्यंते | विचक्षणाः // 1 // शरीरस्थितिमात्रार्थ-माचरंतोऽपि तस्मियं // तत्र गृोरनावेन / नवंति सुख नाजनं // 2 // प्राप्नुवंति यशः शुत्र-मिह लोकेऽपि ते नराः // स्वर्गापवर्गमार्गस्य / निकटे श्व तादृशाः सदा // 3 // गुरवः केवलं तेषां / नाममात्रेण कारणं // मोक्षमार्गे प्रवर्तते / स्वत एवं हि ते नराः // 4 // अन्येषामपि कुर्वति / शुधमार्गावतारणं // तदाक्यं ये प्रपद्यते / विज्ञाय गु. कारणं // 5 // ये पुनर्न प्रपद्यते / तदाक्यं बालिशा जनाः // तेषामनादरं कृत्वा / ते तिष्टंति निराकुलाः // 6 // प्रकृत्यैव नवत्येते / देवाचार्यतपस्विनां // पूजासत्कारकरणे / रक्तचित्ता महाधियः // 7 // इदमेवमुत्कृष्टानां / साधितं चरितं नृणां / सांप्रतं मध्यबुद्धीनां / कथ्यमानं नि: शम्यतां // 7 // -- मध्यमास्ते नरा ज्ञेया / यहषीककदंबकं // अवाप्य मानुषं जन्म / मध्यबुद्ध्यावधारितं // || इंडियग्रामसंपाये / सुखे ये गृछमानसाः // पंडितैरनुशिष्टाश्च / दोलायंते स्वचेतसा // 50 // | चिंतयंति निजे चित्ते / ते दोलायतबुध्यः // विचित्ररूपसंसारे / किमत्र बत कुर्महे / / ए१ // नो. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust