________________ धर्म | ऽप्यमीनिर्वशोकृताः // 7 // हिरण्यगर्नवैकुंठ-महेश्वरपुरस्सराः // एतैर्वशीकृताः संत-स्तेऽपि / | किंकरतां गताः // 27 // अधीत्य सर्वशास्त्राणि / परमार्थविदो जनाः // एनिर्विधुरिताः संत श्चेष्टते बालिशा श्व // एए // एतानि हि स्ववीयण / ससुरासुरमानुषं / वराकमिव मन्यते / स. कलं जुवनत्रयं // 60 // दुर्जयानि ततोऽमूनि / हृषीकाणि नराधिप / एवं सामान्यतः प्रोक्तं / हृपीकगुणवर्णनं // 61 // तिष्टंतु तावलेषाणि / हृषीकाणि नराधिप // स्पर्श नेंद्रियमे वैकं / समर्थ बत वर्तते // 6 // यतो न शक्यते लोकै-जैतुमेकैकमप्यदः // यतो विज्ञातवृत्तांता / श्दमूचुः विचक्षणाः // 63 // सक्तः शब्दे हरिणः / स्पर्श नागो रसे च वारिचरः // नेत्रे कृपणपतंगो। व मरो गंधे विनष्टश्च // 64 // नृपः प्राह खामिनिद्रियजेतारो। नराः किं संति कुत्रचित् // याहोश्चिन्नैव विद्यते / जुवनेऽपि तथावि. धाः // 65 // सूरिराह-राजन्न हि न विद्यते / केवलं विरला जनाः // ये तेषां विनिहतारस्तत्राकर्णय कारणं // 66 / / जघन्यमध्यमोत्कृष्टा-स्तथोत्कृष्टतमा गुणैः / चतुर्विधा जवंतीह / पुरु. षा वनोदरे // 67 // तत्रोत्कृष्टतमास्ताव.-चैरिहेंद्रियपंचकं // अनादिनवसंबंधा-सालितं लालि. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.