________________ धर्मर्दिष्टं / सर्वकल्याणकारणं // 46 // सूरिराहदीका सुखाभिलाषः सुकरो / दुःकरोऽसौ नृपोत्तम // यतो जितेंद्रियग्राम-स्तं साधयति मानवः // | // 4 // अनादिलवकांतारे / प्राप्तानि परमं बलं // दुर्बुधिनिन शक्यते / जेतुं तानींडियाणि वै 246 | // 4 // ते नैते जंतवो मूढाः / सुखमिचंति केवलं // धर्म पुनः सुदरेण / त्यति सुखकारणं // // 4 // इंद्रियाणां जयं नृप / कर्तु नो पारयंत्यमी // धर्मतः प्रपलायंते / ततो जीवाः सुखैषिणः // 50 // नरसुंदरभूपेना-जाणि भगवनिवेद्यतां // कानि तानींद्रियाणीह / किंस्वरूपाणि वा मु. ने // 51 // कथं वा दुर्जयानीति / श्रोतुमिबामि तत्वतः / यत्कुतूहलमत्रार्थे / गुरुकं मम वर्तते // 52 // सूरिः प्राह-स्पर्शनं रसनं घाणं / चक्षुः श्रोत्रं च पंचमं // एतानि तानि राजेंड / हृ. षीकाणि प्रचदते / / 53 // श्टैः स्पर्शादिजिस्तोषो। द्वेषवृधिस्तथेतरैः / / एतत्स्वरूप मेतेषा-मि. द्रियाणां नृपोत्तम // 55 // दुर्जयाणि तथा कानि / कथ्यमानं तथाधुना // दत्तावधानस्तत्सर्व मनुश्रुत्सावधारय // 55 // अनेकनटसंकीर्णे / समरे योधयंति ये / / मत्तमातंगसंघात-मे तैस्ते. / पि विनिर्जिताः // 56 // अंगुल्यग्ने विधायेदं / जुवनं नाटयंति ये // खशक्त्या बलगर्विष्टा-स्ते. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.