________________ 143 धर्मः | रिणिन्ये च रूपादि-गुणाब्या राजकन्यकाः // स्थापितश्च निजे राज्ये / पित्रा धर्म चिकीर्षुणा।। // 11 // ततश्च स्वप्रतापेन / समाक्रांतमहीतलः // कुर्वन् शेषमहीनाथा-नुत्खातप्रतिरोपितान् // | // 12 // हस्तिनिर्वाजिनि त्यैः / पुरैरंतःपुरैस्तथा // कोष्टागारैश्च कोशैश्व / वर्धमानो यथोत्तरं !! | // 13 // स्वकांत्या कामिनी ढं / सन्नीत्या निखिलाः प्रजाः // रंजयन् स्नेहतो बंधून / सऊनान गुणसंपदा // 14 // शौर्येण सर्वशत्रूणां / ददन्नित्यं महाभयं // सौजन्यादिगुणग्रामैः / खकीर्ति बत वर्धयन् // 19 // दुष्टानां निग्रहं कुर्वन / शिष्टानां परिपालनं // बौचित्येन करं गृह्ण-नौचि. त्येन च दमयन् // 16 // नातिशीतो न चाप्युष्णो / न मृन च कर्कशः // न क्रोधी नातिशां. तश्च / नातिदाता न संचकः // 17 // चिंतानंतरनिःशेष—पूर्यमाणमनोरथः // स्वराज्यं पालयामास / राजा विजयवर्धनः // 17 // कुलकं // विस्मारिता सुपुत्रेण / पितुः संबंधिनो गुणाः // फलेन सहकारस्य / पुष्पसंबंधिनो यथा // // 17 // त्रिवर्ग सेवमानस्य / परस्परमबाधया / / व्रजति वासरास्तस्य / सुखवृंदमया श्व // 20 // / अन्यदा च शुने लगे। राझी मदनकंदली // दृष्टं शुभग्रहैः सर्वैः / पुत्ररत्नमजीजनत् // 21 // / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust