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________________ धर्मः | चमे नवे // // तदहो फलदेवस्य / फलपूजाफलं महत् // श्रुत्वा जिनेंद्रपूजायां / जो जव्याः / का कुरुतादरं // 400 // इति फलपूजाकथानकं समाप्तं // फलपूजाफलं प्रोक्तं / दृष्टांतेन सविस्तरं // सांप्रतं घृतपूजायाः / फलं ते नैव कथ्यते // 1 // 242 | यस्तीह नारते क्षेत्रे | काशीदेशः सुविश्रुतः / तत्रामोधनो नाम / गोकुलिको महर्डिकः ॥शा प्रतानां गवां स्वामी। प्रकृत्यैवातिनद्रकः // दानश्रघाबुरत्यंतं / धर्मलिप्सुः प्रशांतधीः // 3 // अन्यदा ददृशे तेन / भ्राम्यता मेदिनीतलं // एकत्रोदसितपाये / पुरे जीर्णजिनालयः // 4 // | तस्मिंश्च सुंदर बिंबं / जैन मुतरां महत् // तद् दृष्ट्वा रंजितश्चित्ते / ततश्चैवं व्यचिंतयत् // 5 // अहो देवाधिदेवोऽयं / सुरूपः प्रीतिदायकः // तदहं स्नपयाम्येनं / सधोधुरसर्पिषा // 6 // वि. चिंत्यैवं ततः सर्पि-रानीयातिमनोहरं / / स्नापितः श्रीजिनाधीशः / पूजितश्चादातादिन्निः // 7 // एवं च प्रत्यहं तस्य / कुर्वतो भक्तिनिर्भरं // कालो ज्याननिक्रांतः / शुभं भावमुपेयुषः // 7 // कालक्रमात्ततो मृत्वा / जातो नंदिपुरे पुरे // जयवर्धनपस्य / पुत्रो विजयवर्धनः // 7 // लानिः स सर्वानिवर्धमानो दिने दिने // क्रमेण यौवनं प्राप्तः / कंदर्पकुलकेतनं // 10 // प. | P. PAC Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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