________________ धर्म नि / यैरेवं विहितो बलिः // 16 // व परजवायुष्कं / जोगसारं नवांतरे // ततो मृत्वात्र सं. |जातः / फलसारस्य नंदनः // 17 // मासांते विहितं नाम / पिता स्वप्नानुसारतः // फलदेव इति ख्यातं / महामहपुरस्सरं // 9 // याकार्येदं स्मृता जातिः / संवेगश्च समागतः // संजातो जव 24 | निर्वेदः / शुके धर्मे गतं मनः // 7 // श्रुत्वेदं फलदेवस्य / फलपूजाफलं महत् / / सर्वझफलपू. जायां / रिलोको ददौ मनः // 70 // अथोक्तं फलदेवेन / जगवन् भवतारक // निर्विलोऽहं जवावासाद् / दूरं दुःखनिबंधनात् // 71 // यतोऽहं स्वकुटुंबस्य / कृत्वा सौस्थ्यं यथोचितं / संसा रोत्तारिणीं दीदां / गृहीष्ये युष्मदंतिके // 72 // सूरिनिर्जल्पितं जद्र / मात्र कार्षीविलंबनं / / वा. मिन्नवं करिष्येऽह-मेवमुक्त्वा समुखितः // 3 // जगाम निजकस्थाने / रंजितो निजको जनः // ततश्च सर्वबंधनां / स्वाभिप्रायो निवेदितः / / 3 // धर्मस्थाने निज द्रव्यं / प्रभृतं विनियोजितं // पुत्रश्च रत्नसुंदर्याः / फलचंद्रानिधानकः // 79 // संमतेन स्वबंधूनां / स्थापितो निजके पदे। कृतं सौस्थ्यं कुटुंबस्य / ययौचित्यविधानतः // 6 // संगाष्य दामयित्वा च / पौरलोकं यथाक्रम // इत्याद्यखिलं कृत्वा च / कृत्यं कृत्यविदां वरः // 7 // ननसैव समायातः / सूरीणां संनिधौ त- | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.