________________ धर्मः | का जझिरे परे / प्रत्याख्यानवहिताः / केचिदिरतदृष्टयः / / 65 // 1 यत्र च फलदेवेन / सूरयः प्रनिताः स्वयं // धन्यजन्मकृतं पुण्यं / मम किं कथ्यतां प्रजो // 66 // मित्रपुत्रकलत्राणि / राजानः सेवकाः श्रियः॥ वर्ततेऽनुकूलाः केन / कर्मणेदं निवेद्य२३० तां / / 67 / / सूरिः प्राहानवस्त्वं तु / पुरे कुंनपुरानिधे // मालिकः पुष्पकुंनाख्यो / नद्रको मल| यानुः // 6 // बंधूनां सर्वपुष्पाणि / फलानि स ददौ सदा // एवं व्यवस्थया कालो / याति ते. षां परस्परं // 6 // // अन्यदाष्टाह्निकापूजा / प्रारब्धा जिनमंदिरे // पुष्पकुंनः समादाय / फलान्य. व समागतः // 70 // गृहीतानि च सर्वाणि / दत्तमुचितवेतनं // तांबूलादिप्रदानेन / संजुष्य च विसर्जितः // 11 // अहो नीतिरहो धर्मो / हो एकार्थचित्तता // अहो दया अहो दान-महो चित्तविशालता // 12 // अन्यत्रापि च दृश्यते / यात्रा नैवंविधो विधिः // एवं चिंतयतस्तस्य / जातं दर्शनकारणं // 13 // अष्टमेऽह्नि समायाते / नणितास्तेन गोष्टिकाः // वेतनेन न में का. | ये / पुण्यमेवात्र वेतनं // 15 // प्रतिपन्नमिदं तेन / समानीय कृतो बलिः // फलान्यनेकभेदानि / / सांडान्याओंतरात्मना / / 15 / / कृतार्थमद्य मे जन्म / जीवितं यौवनं तथा // फलान्यपि कृता P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust