________________ 30 धर्म स्वल्पं शरीरिणां // सकृत्सौख्यानि जायते / दुःखानि च पदे पदे // 53 // सिघौ च सर्वजीवानां | / संपूर्णा सुखसंकथा // निःशेषकर्म विजेदा-त्स च चारित्रयोगतः // 55 // सर्वोपाधिविमुक्तं च / चारित्रं प्राप्य सुंदरं // क्रमेण केवलज्ञानं / लोकालोकप्रकाशकं // 55 // शैलेशी च समासा. छ / समस्तोपरतक्रियं / / नवोपग्रहकारि च / हत्वा कर्मचतुष्टयं // 16 // सर्वदविनिर्मुक्ता / अ टकर्मविवर्जिताः // अवांनोधिं समुलंध्य / गबंति परमं पदं // 27 // इदमाख्याति सर्वज्ञः / सन. रामरपर्षदि // सुरासुरनराधीश-मौलिमालार्चितक्रमः // 17 // जवाटव्यामटाट्यंते / बहुःखपी. मिताः // अधर्मसंबला जीवा / यत्र तत्रैव दुःखिताः // 55 // तो जव्या जवाटव्यां / परित्रमण जीवः // यदि यूयं तदा लात / धर्मसंबलमुत्तमं // 60 // वंदित्वा च सना सर्वा / विधाय करकु. मलं // अवादीच गणाधीशं / सत्यमेव त्वयोदितं // 61 // तथै वैतन्न संदेहो / तथैवैतन्न संशयः | // अहो निदर्शितो मागेः / सिधिपुर्यास्त्वया प्रभो // 6 // श्रमणो ब्राह्मणो वापि / पाखंडी वा | गृहाश्रमी // ईदृदं धर्ममाख्यातुं / न शक्तः कोऽपि जुतले / / 63 / / यथायोगं परिझाय / स्वत ए. | व च योग्यतां // परलोकहितं पथ्यं / ददध्वं धर्मसंबलं // 64 // तिनः केऽपि संजाताः / श्राव- | P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust