________________ धर्म निर्विशेषकं // ततोऽतिनक्तिसंयुक्तः / समायातस्तदंतिकं // वंदित्वा विधिवत्सूरिं / निषमः शुरुभू. 'टीका| तले // 30 / / ततस्तं सूरिनिः किंचि संचाष्य च यथोचितं // योऽपि च समारब्धा / देशना नवनाशिनी // 31 // यथा जीवाः प्रबध्यते / मुच्यते कर्मजिस्तथा // संक्लिश्यते यथा चैते / यांति ते नरकं तथा // 32 // रागद्वेषप्रबछानां / विपाकोऽतीवदारुणः // कष्टेन वेद्यते जोवैर्दुर्ग: तौ दुष्टकर्मणां // 33 // गम्यते कर्मणा येन / नरके तत्र वेदनाः // तादृश्यस्तविपाकेन / वेद्यते पापकर्मभिः // 34 // बेदनानेदनकुंजी-पाचनबहुशीतवातजनितानि // शाल्मलीवृक्षारोपण-वैतरिणीतारणादीनि // 35 // तप्तत्रपुपानात्पुन-दह्यमानसर्वागविह्वलाः संतः॥ असिपत्रवनबायां / गतास्तैरेव तत्र पाटयंते // 36 // उत्कृत्योत्कृत्य खंडानि / मांसास्यास्ये तदीयके / प्रचिदिपुः प्रजल्पंतो। मांसमासीत्तव प्रियं / / 37 // अंबादिजनितास्तीवाः / परस्परसमुद्भवाः // क्षेत्रानुजाविताश्वान्या / वेद्यंते तीव्रवेदनाः // 30 // उक्तं च-यबिनिमीलियमित्तं / नबि सुहं दुकमेव अ गुबई // नरए नेरश्याणं / अहोनिसं पच्चमाणाणं // 35 // इदमाख्याति सर्वशः / सर्वदर्शी जि. | नोत्तमः // केवलज्ञानसदृष्ट्या / लोकालोकं विलोकयन् // 40 // असत्यवादिनो जीवाः / कृत्वो P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust