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________________ धर्म: | मनः // 17 // एवं तिष्टनसौ तत्र / स्वकीयगुणसंपदा // सर्वस्यापि हि लोकस्य / प्रमोदमकरोदिः / सति // 17 // स्थित्वा च तत्र सानंदः / कतिपयान्यहान्यसौ // शुभचंडं समापृच्छ्य / स्वकीयं-पु. रमागतः // 20 // तत्र संपादयन् प्रीति / लोकानां निजकैर्गुणैः // शुंक्ते नोगान सपत्नीकः / पू. खिलमनोरथः // 21 // कालेन गबता तस्य / जाताः पुत्रा मनोरमाः // सर्वलदाणसंपूर्णाः / कलाकौशलशालिनः // 12 // अन्यदा फलदेवस्तं / हार, सौजाग्यसुंदरं // परिधाय निजे कंठे / एकाक्येव सकौतुकः // 13 // निष्क्रांतश्च ततः स्थाना-मंगलदिदृदाया // बनाम व्योममार्गेण / ग्रामे ग्रामे पुरे पुरे // 24 // युग्मं / हारानुजावजोदय-सौनाग्यगुणयोगतः // सर्वत्र सर्वलो. कस्य / प्रीतिस्थानमनदसौ // 55 // यत्र यत्र पुरे ग्रामे / यात्यसौ तत्र तत्र हि // जायते तन्मना लोकः / स्त्रीलोकस्तु विशेषतः // 26 // ब्राम्यन्नेवं महीपीठे / वीदमाणो जिनालयान् // पूजयन् वंदमानश्च / जिनबिंबानि नावतः / / 27 // __ अन्यदा च जगामैष / पुरं नोगपुराभिधं // तस्मिन्नालोकयामास / सूरि सूरप्रनानिधं // 2 // / कानने सुंदरामोदे / बहुशिष्यसमन्वितं // याचदाणं जिनप्रोक्तं / धर्म संविमपर्षदि // 25 // त्रि P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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