________________ धर्मः | नो यथेप्सितः // 5 // संतोषितो निजो लोको / दवा वित्तं यथोचितं // सन्मानितो बृहलोकः / सहस्त्रादिप्रदानतः // 76 // यथालाभं निजं वित्तं / धर्मस्थाने नियोजितं // यदन्यदपि कर्तव्यं " / तत्कृतं सर्वमंजसा // ए9 // लुंजानश्च सपत्नीको / कामनोगाननुत्तरान् // विदधधर्मकार्याणि / 233 | कालं नयति नीतिमान् / / ए // तथास्य संपदं दृष्ट्वा / रंजिताः सज्जना जनाः // दनाश्च दुर्ज ना लोकाः / खनावोऽयं भुवि स्थितः // एए // अन्यदा शुनचंद्रोऽसौ / फलदेवं प्रजापते // जो भ्रातर्गतुमिडामि / सांप्रतं स्वपुरंप्रति // 300 // किंचात्र साधवः श्रेष्टि-न संत्यागमवेदिनः ॥न च साधर्मिका लोका / नापि ताग्जिनालयाः // 1 // तद्भो मदुपरोधेन / तत्रायातु नवानपि // वीदतां जिनवेश्मानि / वंदतां मुनिपुंगवान / / 2 // शृणोतु शुधसिधांतं / सिधिसंबंधसाधकं // वीदतां धर्मसन्निष्टं / जनं साधर्मिकं तथा // 3 // एवमस्त्विति संजटप्य / फलदेवेन सत्वरं // . रिविणसंपूर्णो / बोहिबः प्रगुणीकृतः // 4 // ततस्तत्र सपत्नीकः / शुभचंद्रसमन्वितः // समारुह्य गतः शीबूं / पुरे वीतलयानिधे // 5 // ततश्च शुजचंद्रस्य / बंधुवर्गोऽखिलोऽपि हि // तस्य स. न्मुखमायातो / बहुः पौरजनस्तथा // 6 // महर्षिपूर्वकं प्रीत्या / पुरमध्ये प्रवेशितः // नीतश्च तै. Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Guinratnasuri M.S.