________________ धर्मः / // 13 // तावत्पश्यति तं सर्प-जीवदेवं पुरः स्थितं // देवः प्राह गवानद्य / परिजानाति मां न | का वा // 7 // तेनोक्तं परिजानामि / सामान्येनामरो नवान् // नो विशेषेण स प्राह / तर्हि ते क. | थयाम्यहं // 79 // स एव सर्पजीवोऽहं / यस्त्वया प्रतिबोधितः॥ मृत्वा जातः सुरः कल्पे / ब्रह्म 231 | | लोकान्निधानके // 16 // अवधिझानतो ज्ञात्वा / समायातस्तवांतिके // तद्ब्रूहि यत्तवानीष्टं / ये. न संपादयाम्यहं // 7 // फलदेवस्ततः प्राह / दीपे नंदीश्वरानिधे / / चैत्यानां वंदनार्थ तु / गंतु. मिजामि सांप्रतं // 9 // तेनापि सुंदरं चैत–देवमुक्त्वा विकुर्वितं // विमानं सुंदराकारं / विस्ती णे सुमनोहरं // // फलदेवस्ततस्तस्मि-नारोप्य सपरिबदः // नीतो नंदीश्वरे द्वीपे / दर्शिताश्च जिनालयाः // 70 // ततश्च तेन चैत्यांनि / वंदितान्यखिलान्यपि // जातश्चित्ते महानंदः / कृतार्थ खं ह्यमन्यत // 1 ॥धानीतश्च ततः शीधं / तस्मिन्नेव जिनालये // तत्रापि च कृता पू. जा। सर्वैरपि विशेषतः // 7 // योऽप्यवाचि देवेन / फलदेवः कृतादरं // सांप्रतं किमु ते का. र्य / ब्रूहि येन प्रसाध्यते // 3 // स प्राह नास्ति मे कार्य / कार्य किंचिदतःपरं // पूरितं मे म. नोऽजीष्टं / निजस्थानमलंकुरु // 4 // गतो देवस्ततस्तेन / वनमाला प्रजटिपता // त्वया जा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust