________________ धर्मः | क्रमशस्तत्र संप्राप्तो / गृहीत्वा रत्नसुंदरीं // प्राभृतं च वरं लात्वा / गतोऽसौ राजमंदिरे // 21 // दृष्टो राजा ततस्तस्मै / चार्पिता रत्नसुंदरी / / वरप्राभृतसंयुक्ता / ततस्तुष्टेन भुजा // 55 // पृष्टश्च | कुत्र जो लब्धा / मत्पुत्री रत्नसुंदरी // तेनाप्यामूलतः सर्वो / वृत्तांतोऽस्मै निवेदितः // 53 // यु. 225 | ग्मं // ततश्च सादरं राझा। स्नापितो गोजितस्तथा // सन्मानितश्च वस्त्राद्यैः / फलदेवः सगौरवं | // 55 // तपादिगुणग्रामै / राजा रंजितमानसः॥ तस्मा एव ददौ प्रीत्या / कन्यां तां रत्नसुंदरी // 55 // शुभे च तिथिनदत्रे / महामहपुरस्सरं // वृत्तं चातिप्रमोदेन / पाणिग्रहणमंगलं // 16 // दत्तं च नृजा तस्मै / वरप्रासादसंयुतं // हस्त्यश्वस्वर्णरत्नादि-रिदानमनेकधा // 17 // एवं नाहियोपेतो / झुंजानः कामजं सुखं / / मासमेकं स्थितस्तत्र / श्लाघ्यमानो जनरलं // 27 // ततो मुत्कलितः कष्टा-द्राझा सन्मानपूर्वकं // हस्त्यश्वरथपादाति-सत्सामय्या चचाल सः ॥रणा बागबच्च सुधासारे / नगरे दिनपंचकं / / स्थित्वा कृत्वा महानंदं / श्वशुरस्य ततोऽपि च // 60 // संप्रस्थितः स्वसामय्या / रत्नगंजीरमागतः // सिंहविक्रमसंबंधि-हस्त्याद्यं विससर्ज सः // 61 // | युग्मं // बारोप्य निजपोतेषु / स्वर्णरत्नादिकं धनं // ततः स्वयं समारूढो / हेलया सपरिबदः / / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust