________________ धर्मः / / मृत्वाजनि चुजंगमः // 2 // तेनेदं मूर्तितेनोच्चै-निधानकमधिष्टितं // तदिदं रदता तेन / / / प्रत्यक्षेणेव मृत्युना // // // स्वपुत्रः पुत्रपुत्रश्च / नीतौ दावपि पंचतां // विचिंत्यैवं ततस्तेन / स पुमान जणितो यथा // 20 // युग्मं // दर्शयस्व निधानं मे / येनोखात्य तवार्पये // स. पाढ म. म नो कार्य / तेन जो मूर्तमृत्युना // 30 / / जीव नंद चिरं कालं / सुंदवेमां निजसंपदं / / स प्रोक्तः फलदेवेन / मा नैषीदर्शयस्व मे // 31 // उत्तिष्ट येन तद्व्य -मुत्खात्याहं ददामि ते॥ प्रतिपन्नं च तत्तेन / नीतश्च निजमंदिरे // 32 // दर्शितं च तकं तस्मै / तेनापि च ततो हुतं / / गृहीत्वा फलपत्राणि / तस्य विषनशाखिनः // 33 // कृत्वा चूर्णमतिश्लदणं / बडो मुष्टिस्ततो ज वात // उद्घाटितं निधानं त-निष्क्रांतः स बुजंगमः // 34 // आडोटितश्च चूर्णेन / जुजंगोऽ. ऽजनि निर्विषः // उक्तश्च फलदेवेन / मुंच मुंचाधुना रुषं // 35 // मा कार्षीनिजगोत्रस्य / दायं जो भो महोरंग // तवैवेदं गृहं जोगिं-स्तवैते पुत्रपौत्रकाः // 36 // तवैवायं निजो लोकः / किमेवं खिद्यते भवान् // वाकयेदं जुजंगोऽपि / जातो जातिस्मरः क्षणात् // 37 / / तस्यैव पाद मूलांतः / संलीनः संवृतेक्षणः / ततस्तस्मै पयो दत्तं / न चासौ पातुमिबति // 30 // शुजचंद्रस्त- . P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun, Gun Aaradhak Trust