________________ धर्म- प्रति // प्रेरितो वर्यशकुनैः / परिवारसमन्वितः // 17 // युग्मं // गबता च पुमानेकः / परं खेद समुपेयिवान् // दृष्टः प्रदेश एकस्मिन् / महादारिद्यपीमितः // 17 // पृष्टश्च फलदेवेन / गत्वा को मलया गिरा // किमित्येवं महासत्व / सखेद व लक्ष्यसे // 10 // स प्राह नोचितं वक्तुं 26 / निजखेदस्य कारणं // तथापि तव मूत्यैव / रंजितः कथयाम्यहं // 20 // इदं हि वसुधासारं / महाजाग महापुरं / / अत्रानन्मे सुचित्ताख्यः / पितामहपिता मम // 21 // तेनार्जिता महारंगैः / | सप्त स्वर्णस्य कोटयः // निखाताश्च महालोना-देकांते निजवेश्मनि // 5 // . - अन्यदा मूर्चितस्तत्र / मृतोऽसौ दैवयोगतः // तत्पदे च कृतो लोकै-स्तत्पुत्रः सुधनानिधः // 3 // अन्यदा सीदता तेन / समुत्खातुं प्रचक्रमे // निधानं तदहो पैत्र्यं / यावत्तस्मादिनिर्गतः // 24 // दुष्टो दृष्टिविषः सर्प-स्तेनालोकि महारुषा // सुधनो जस्मतां नीत–स्तत्पदेऽजनि तसुतः // 25 // युग्मं / / सुचित्तो नाम सोऽप्येवं / प्रापितो जस्मपुंजतां // पदे तस्यानुजातोऽहं / दुरं दारिद्यपीमितः // 26 // निधानस्थं च नूनं त-हारिद्यविनिवारकं / / व्यं लातुं न शक्नोमि || तेनाहं खेदवानिति // 27 // श्रुत्वेदं फलदेवेन / निजचित्ते विचिंतितं // मन्ये सुचित्त एवायं P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust