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________________ धर्मः . यतोऽयं सुंदरो धर्मो / लब्धो लब्धिमता मया // स एष शुनचंद्रो मे / सबंधुबैधुरो गुरुः // // 6 // यत्संगेनाद्य जातोऽहं / सर्वकल्याणजाजनं // यथोक्तं शुभचंद्रेण / फलदेवाधुना नवान् // 7 // घाख्यातु निजवृत्तांतं / येन मे जायते धृतिः // मूलादेव समाख्यात-स्तस्मै तेनापि सोऽखिलः // 7 // युग्मं / / सोऽपि तस्य समाकार्य / मुमुदे निजमानसे // एवं च धर्मसंबंध / विचारं कुर्वतोस्तयोः // // // वहंतस्ते महापोताः / समुलंध्य पयोनिधिं // संप्राप्ता रत्नगंजीरं / पुरं पौरजनाकुलं // 10 // युग्मं // ततो नंगरितास्तत्र / वेलाकुले जनाकुले // ततोऽवतीर्य पोतेभ्यः / फलदेवो नयान्वितः // 11 // प्रधानवाणिग्निः सार्धं / गृहीत्वा प्राभृतं महत् // गतो राजकुले शी. धूं / दृष्टो राजा ननाम तं // 12 // युग्मं // अर्पितं प्राभृतं पश्चा-निषलो दर्शितासने // पृष्टा वार्ता नरेंजेण / प्रोक्ता तेनापि मूलतः // 13 // ततस्तद्दर्शने नैव / राज्ञा रंजितचेतसा / / सन्मानं सादरं तस्य / प्रासादा दर्शिता वराः // 14 // ततश्च पातितं शुक्लं / विक्रीतं च क्रयाणकं // थासादितो महान लागो / जाता चित्तस्य निवृतिः / / 15 / गृहीतं प्रतिगांमं च / सर्वे च प्रगु. | पीकृतं // अन्यदा फलदेवस्तां / गृहीत्वा रत्नसुंदरीं / / 16 // कृत्वा प्रधानसामग्रीं / चेले सिंहपुरं. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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