________________ 229 धर्मः // 4 // मैत्री सर्वेषु सत्वेषु / माध्यस्थ्यं निर्गुणे जने // कृपा संक्विश्यमानेषु / तुष्टिः सजणधा. टीका रिषु // 55 // माननं मान्यलोकस्य / पूज्यलोकस्य पूजनं // सर्वशिष्टजनानिंद्य व्यवहारेषु व. र्तनं // 6 // श्यनेकगुणग्रामः / सुश्रावकजनोचितः // नाख्यातुं शक्यते सर्यो / जो श्रेष्टिन मादृशैर्जनैः // 7 // लेशतश्च मयाख्यातो / यथामति तवाग्रतः // विस्तरेण समाख्याति / साधः | वो हि बहुश्रुताः // 7 // तदेष श्रावको धर्मः / सर्वः सर्वज्ञनाषितः / शुधसम्यक्त्वसंयुक्तः / पं. चाणुव्रतसंयुतः // 7 // सप्तशिदापदोपेतो। नानाजिग्रहशोजितः // समतिपूरसन्मार्गो / दुर्ग तिहाररोधकः // 200 // पारंपर्येण जीवानां / मोदस्यापि हि साधकः // मयापि श्राघधर्मोऽयं / सर्वकल्याणकारकः // 1 // सजावतो विधानेन / गृहीतो गुरुसन्निधौ // अथानंदितचित्तेन / फल: / देवेन जल्पितं // 2 // सुंदरः सुंदरो धर्मः / साधु साधुदितं त्वया // ममापि त्वं ह्यमुं धर्म / देहिं त्वमेव मे गुरुः // 3 // याख्याय देवतत्वादि / तेनापि च तथा कृतं // ततश्च फलदेवस्य | धर्मप्राप्तिवशादलं // 4 // संजातः परमानंद-स्ततश्चिंतितवानिदं // धन्योऽहं कृतपुण्योऽहं / दृष्टोऽहं | त्रिजगन्यिा // 5 // युग्मं // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust