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________________ 253 | धर्मः | योः // 7 // त्यजत्यनर्थदं च / मनोवाकायजं सदा // समस्तव्रतसंक्षेपं / कुवैति प्रतिवासरं / / // 3 // सावधेतरयोगानां / त्यागसेवनरूपकं // सामायिकवतं चैव / यथाशक्त्या प्रकुर्वते ॥ज्या " याहारदेहसत्कारा-ब्रह्मव्यापारवर्जनात् // कुर्वति पौषधं चैव / विशुद्धं धर्मपोषकं // 5 // वरा हारादिदानं च / निजन्यायार्जितं तथा // यति साधुलोकाय / कर्मदयार्थमंजसा // 6 // जने गृहे च बिंबे च / सिघांते संघ एव च // व्ययंति च यथाशक्त्या / न्यायोपात्तं निजं धनं // 77 / / | तथा साधर्मिलोकानां / वात्सव्यं नक्तियोगतः / / प्रकुवैति यथायोगं ! यथाकालं यथावलं // 7 // क्रियते च सदा श्रादै-स्त्रिसंध्यं जिनपूजनं // सदा सशुरुसेवा च / भक्त्या जैनवचःश्रुतिः // // // दानं दीनादिलोकेभ्यो / विधिवद्गुरुपूजनं // लोकागमविरुघानां / दूरतः पखिर्जनं / / // ए०॥ अशिष्टसंगतित्यागः / शिष्टैश्च सह संगतिः // मोदासौख्याभिलाषश्च / संसारजयभीरता // 1 // इंद्रियाणां जयः शक्त्या / कषायाणां च निग्रहः // सत्यं शीलं च शौचं च / दाक्षिण्यं च दयाबुता // 9 // तथेगालवनादीनां / बहुसावद्यकर्मणां / बहुलोकविरुघानां ! शक्तितः प. | खिर्जनं // ए३ // परपीमापरित्यागः / परावर्णाप्रजाषणं // परोपकारकारित्वं / परद्रव्येष्वलोनता / / P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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