________________ धर्मः | रत्नसुंदर्याः / कारणेनावयोरिमा // 40 // संजाता दारुणा व्याप-दन्योन्यं मरणांतिका // तदेष स्वीयवृत्तांत / आवाभ्यां कथितस्तव // 1 // युग्मं // सांप्रतं त्वं स्वकीयं नौ / संक्षेपेण निवेदय // स प्राह वयमायाताः / सोपाराजिधपत्तनात् // 42 // गंतारः सिंहलद्दीपं / वाणिज्येन धनेडया 217 // ततः प्रोक्तं सुचंडेण / यद्येवं गृह्यतामियं / / 43 // कन्या सिंहपुरे गत्वा / जनकस्य समर्पयेः // तथा गृहाण भो विद्या-मिमामाकाशगामिनीं // 44 // युग्मं // येन नौ जायते तुष्टि-स्ते. नापि च तथा कृतं // अथ प्रणम्य तो जल्या / विद्याधरौ गतौ ततः / / 45 // फलदेवोऽपि सानं. दो / गृहीत्वा रत्नसुंदरीं // थायातस्तेषु पोतेषु / प्रवृत्तो गंतुमुच्चकैः / / 46 / / अथ गद्भिरेकत्र / वंशाग्रे ददृशे ध्वजः // किमेतदिति पप्रब / फलदेवो निजान जनान्। // 4 // तैरवाचीदमत्रास्ते / निन्नवाहनिको नरः / / कश्चित्तनेह बकोऽयं / वंशाग्रे दृश्यते ध्वजः // // यात्मनो झापनाहेतो-रेवं संजावयामहे // श्रुत्वेदं प्रेषिता द्रोणी / स पुमानानोतः दा णात् // 45 // युग्मं // थारोपितः स्वबोहिले / दृष्टो रोगैरपि फुतः / तथाहि तत्तनौ दृष्टो / दा. | घज्वरो हि दारुणः // 50 // श्वासः कासो गलत्कुष्टः / शुष्कर शिरोव्यथा // अदिकदिव्यथा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. .. Jun Gun Aaradhak Trust