________________ धर्मः | शंप्रति // 17 // युग्मं // समुवंध्य ततस्तूर्ण-मनोधेर्नूयसीं जुवं // सुवर्णवालुकाख्याया। नद्या | मुखमुपागतः // 17 // ततो जलेंधनाद्यर्थ / प्रेषिताः पुरुषा निजाः // गत्वा तेऽपि समायाता / जलाधादाय सत्वरं // 17 // प्रोक्तं च फलदेवाय / यद् दृष्टं कौतुकं तकैः // यथास्मानिर्गतैस्तीरं 217 / दृष्टैका वरकन्यका // 20 // वंशकुमंगमध्यस्था / यौवनारंभवर्तिनी // सविषादा रुदंती च / नय संत्रांतलोचना // 21 // युग्मं // कुमंगानातिदरेण / ददृशे पुरुषड्यं // पतितं नृतले शस्त्र प्र हारशतसंकुलं // // अंतःशल्यं समासन्न-मरणादतिदुःखितं // श्रुत्वेदं फलदेवोऽपि / समु. तीर्य ऽतं ततः // 23 // युग्मं // पारुह्य डोणिकां लध्वीं / कियद्भिः सुनरैः सह / / गतस्तत्र द णादेव / दृष्टौ च पुरुषो तकौ // 24 // शब्योरणिकानाम्नी / कृष्टा सा चौषधी ततः॥ दत्ता व. णमुखेष्वाशु / ततः शल्यानि निर्ययुः // 25 // संरोहिणीप्रयोगेण / व्रणाः संरोहिताः दाणात् / / स्वस्थावस्थौ च तो जातौ / पुमांसावौषधीगुणात् // 26 // पृष्टौ च फलदेवेन / यथा नोः किमु कारणं // युवां यदत्र शस्त्रौष-प्रहारशतजर्जरौ // 27 // गतौ च मरणावस्थां / पतितावत्र नृतले | // ताभ्यामुक्तं महानाग / श्रूयतां तव कथ्यते // // युग्मं // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust