________________ 16 धर्म- देवं / सपूजं कुरु सर्वदा // 6 // सा प्राह सर्वमेवेदं / करिष्याम्येवमेव हि // नान्यथा जायते त तु / यचित्ते चिंतितं त्वया // 7 // चिंतानंतरमेवाशु / येनारामः स शुष्ककः // त्वत्प्रचावेण सं. जातः / सद्यः पुष्पफलाकुलः // 7 // तदिदं सर्वथा मुक्तं / वैरं पूर्वनवानुगं / प्रतिपन्नश्च देवोऽयं / देवत्वेन मयाधुना // 7 // अतस्त्वं मेऽधुना बंधु-ौरव्यो गुरुसन्निभः॥ इदं गृहाण मत्तुष्टिहेतवे रत्नपंचकं // 10 // तत्र यदगृहस्याग्रे / सद्वृदो यः प्रदृश्यते // सर्वरोगहरश्चायं / नामतः कर्मतस्तथा // 11 // द्वितीयश्च तदासन्ने / दृश्यते यो महामः // सर्वविषापहो नाम्ना / ख्यातो. ऽयं क्रियया तथा // 1 // एतयोः पुष्पपत्राणि / फलानि च गृहाण जोः // येन मे जायते तुष्टि- मोघां प्रार्थनां कृथाः / / 13 / / तथेदं जो गृहाण त्व-मौषधीदयमुत्तमं // एका संरोहिणीनाम्नी / शब्योछारकरा परा // 14 // अयं च गृह्यतां बंधो / हारः सौजाग्यसुंदरः / / दुर्भगस्यापि सौगाग्य-कारको मम तुष्टये // 15 // ततश्च फलदेवोऽपि / लात्वा तदत्नपंचकं / / वनमालोपरोधेन / पूजयंस्तत्र तं जि| नं // 16 / / दिनानां पंचकं स्थित्वा / वनमालाविसर्जितः // अचलद्यानपातस्थः / स्वाभिप्रेतदिः / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.