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________________ 11 धर्म | दनशोजितं / / 45 // दुरादेव ततो दृष्ट्वा / शोजितानि वनश्रिया / / मलयाचलशृंगाणि / फलदे. की वोऽब्रवीदिदं // 20 // कोऽयं जो दृश्यते शैल-स्तैरूचे मलयान्निधः // गबतामुं प्रपश्याम / ए वमस्त्विति ते जगुः // 51 // . ततश्चोत्तीर्य पोतेभ्यो / गतस्तत्र सकौतुकः // युक्तः शौर्ययुतैर्यो धैः / कैश्चिहणिक्सुतैस्तथा // // 5 // बालोक्य सर्वतः शैल-मुत्तीर्णाश्च ततो वि // ते सर्वे हर्षिता बाढं / पश्यंतिस्मान्नि तस्ततः // 53 // यावदेकत्र पश्यति / वरारामध्यं महत् // शुष्कमेकं तयो ढ-मेकमत्यंतशाम्वलं // 24 // तयोर्मध्ये पुनदृष्टं / जीर्ण देवकुलयं // ततस्तत्रापि ते जग्मु-म्यिंतिस्म समं ततः // 25 // जिनालये जिनेंद्रस्य / वि सर्वांगसुंदरं // विलोक्य च प्रहृष्टोऽसौ / मनस्येवं व्यचिंतयत् // 56 // अहो देवाधिदेवोऽयं / पूज्योऽयं सर्वदेहिनां // तदेनमहमप्यद्य / पूजयामीति तर्कयन् // 57 // बहिर्देवकुलाद्याव-निष्क्रांतः पुष्पहेतवे / तावद् दृष्टः स धारामः / सद्यः पल्ल. वितधुमः // 7 // युग्मं // ततश्चादाय पुष्पाणि / पूजितः परमेश्वरः // गृहीत्वा फलपूगं च / त. | पुरो रचितो बलिः // एए / ततः प्रणम्य तं देवं / नत्या चिरं विलोक्य च // संप्राप्ताशेषकल्या. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036436
Book TitleDharmratna Karanda Tika Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1915
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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