________________ 500 धर्मः। पीह दृश्यते // 16 // अतिसंतिष्टमानोऽपि / प्रमोदादीश्वरे जने // कार्याय कटप्यते क्षुबै-धिः | टीका ग्दौर्गत्यमसंगतं // 17 // अन्यस्य विनयेनापि / दरिद्रो यदि तिष्ठति // अर्थित्वपक्षे तदपि / दि. प्यते निखिलं खलैः // 10 // एवं च फलसारोऽसौ / दुर्गदारिद्यखेदितः // कष्टां दशां समापन्नः / कष्टं नयति वासरान // 10 // अन्यदा गृहिणी तस्य / पुष्पश्रीनामिका किल // रजन्यां पश्चिमे यामे / शयाना शयनीयके // 20 // स्वप्ने पश्य निज़ारामान / पल्लवितान समंततः // चारुपुष्पफलोपेतान | नयनानंददा. यकान् // 21 // शिष्टः स्वप्नतया गर्तु-स्तेनाजाणि तव प्रिये // नविता सुंदरः पुत्रः / समीहित. फलप्रदः // 15 // प्रतीच्य वचनं चतु-निजस्थानं जगाम सा // गमितो रात्रिशेषश्च / धर्म्यया कथया तया // 23 // फलसारोऽपि सानंदो / दृष्टः स्वप्नो वरोऽनया / / जल्पनेवं गतः प्रात-नि: जारामेषु सत्वरं // 24 // यावदालोकते सर्वान् / पुष्पितान फलितांस्तथा // सर्वतः शाम्बलानुचैः / सिक्तानिवामृतप्लवैः // 25 // ततोऽसौ चिंतयामास / विस्मयाकुलचेतसा // यहो मे पुण्यविस्फू र्ति-रहो मे चलिता दशा // 26 // ये नैते सर्वतो रस्याः / पुष्पिताः फलिता कुमाः / / मन्ये | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust