________________ धर्मः | न. तस्यासी-दारिद्यमतिदारुणं // ततोऽसौ सर्वलोकानां / जातः परिनवास्पदं // 5 // यतः-- / 1. दौर्गत्यं देहिनां सुःखं / किमन्यैः कीर्ति तैः पुनः॥ इहैव येन जायते / जीवंतोऽपि मृता च // // 6 // दैन्यस्य पात्रतामेति / परावृतेः परं पदं // विपदामाश्रयः शश्वद् / दौर्गत्यकलुषीकृतः / / 7 / / नीचानपि हि सेवंते / पालयंति पशूनपि // समुऽमपि लंघते / दारिद्योपहता नराः // 7 // मूर्त लाघवमे वैत-दपायानामिदं गृहं // पर्यायो मरणस्यैष / दारिद्यं नाम यऊनाः // 5 // लङ ते बांधवास्तेन / संबंध गोपयंति च // न ते यथा पूर्व / यस्य स्तोकाः कपर्दिकाः // 10 // परगेहे कदन्नानि / दत्तान्युच्चैरवया // प्रचुक्ते चाश्रुमिश्राणि / दौर्गत्याकिमतः परं // 11 // धा. मिकोऽपि विनीतोऽपि / वृछो वा पूजितोऽपि वा // जनैर्दरिडः सावझं। चांमाल व दृश्यते / / // 12 // शौचार्थ शिष्टयाप्यस्ति / किंचित्कार्य क्वचिन्मृदा // निर्धनेन नरेणेह / तावन्मानं न वि. द्यते // 13 // पुरुत्तारो महापंकः / शल्यं दुःखदमुच्यते // दुर्लव्यमेतत्कांतारं / यद्दरिऽस्य जीवि | तं // 14 // स एव नरको घोर-स्तदेतव्यसनं महत् / सेयं कष्टा दशा पुंसां / दारिद्यं नाम य | ऊनाः // 15 // स्पष्टेऽपि वासरे सत्यं / दौर्गत्यतमसावृतः // अग्रतोऽपि स्थितो यत्नान केना. P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust