________________ 203 धर्मः / // 34 // स च विधूननं धत्ते / दत्ते च प्रशमं परं // पुष्णाति च परं श्रेयः / मुष्णाति कुमतेर्मतिं | // 35 // स्वर्गापवर्गसंसर्ग-साधकः पापबाधकः // सर्वसौख्यकरः सत्यो / धर्मः सर्वभाषितः / // 36 // हात्रिंशता सहस्राणां / महाबलमहीभृतां // षोडशयदसहस्रैः / सर्वदा कृतसन्निधिः // 3 // चतुःषष्ट्या सहस्राणां / कांताकांतकुचोष्मणा // शीतकालेऽपि निःशीतः / शेते चक्री निराकुलः | // 30 // युग्मं // यद्भुक्ते जारतं वर्ष-मुध्धृताखिलकंटकं // विचचार गजारूढ-उत्रबन्नदिगंत| H // 35 // जीव नंद चिरं देव / देहि दृष्टिं मदानने // इत्यादिमागधोजीत-गीर्भिर्गीतगुणां तरः // 40 // जोगायोगान् यथा शक-श्चक्री चुक्ते निराकुलः // तदेतदईदुक्तस्य / दयाधर्मस्य जूंनितं // 41 // किंबहुनात्र संसारे / यदन्यदपि सुंदरं // दृश्यते वस्तु तत्सर्व / दयाधर्मस्य सल्फलं // 42 // तदस्य श्रवणे यत्नो / नित्यं कार्यों हितैषिणा // शृण्वन्नेव हि जानाति / पुण्यापुण्यं | हिताहितं // 3 // श्रुत्वेदं रंजितो राजा / सम्यक्त्वं प्रतिपन्नवान् // लोकोऽपि च यथायोग्यं / प्रपन्नो धर्ममाईतं // 44 // अथ कणसारः प्राह किमकारि मया पुण्यं / जगवन पूर्वजन्मनि // अदता यदाता येन / संजाता मम मंदिरे॥। . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust 2ANA