________________ 200 धर्म | // 21 // प्रणनाम यथायोगं / सन्मानं च चकार सः // मिलिता च सुताराख्या। सुदर्शना च सः | प्रिया // 22 // युग्मं // ततः शालिप्रना चक्रे / प्रणामं सादरं तयोः // ततो गायत्रयोपेतो / जु. जानो भोगसंपदं // 23 // वल्बनो भृनुजोऽत्यर्थ / लोकानां च विशेषतः // शशीव बंधुलोकानां / | कुर्वाणो नयनोत्सवं // 24 // महासौख्यार्णवे मनो / गमयतिस्म वासरान् / / भुक्ता जोगाश्चिरं ते. न / जाताः पुत्रा मनोहराः // 25 // विजिर्विशेषकं // ततश्च जुक्तनोगत्वा-छमें चित्तं ददात्यसौ॥ अन्यदा मेघनादाख्या / मेघनादसमपन्नाः // 16 // संसारसागरोत्तार-सेतवो जव्यदेहिनां // चतुनिसुविज्ञात-समस्तनवविस्तराः // 57 // नवकांतारनिस्तार–सार्थवाहसमा नृणां // संतागुल्ममहोद्याने / स्थाने मुनिजनोचिते // 20 // समागत्य स्थितास्तत्र / सूरयो धर्मदेश काः॥ वंदनार्थ गतो राजा / लोकाश्च बहवस्तथा // 25 // चतुर्भिः कलापकं // प्रारब्धा देशना रम्या / नव्यबोधप्रदायिनी // मेघनादध्वनिनोच्चै-मेघनादमुनीश्वरैः // 30 // नो नो नव्याः शृणुत विशदं मामकं वाक्यमेतत् / कर्ण दत्वा विगतविकथं देषरागव्यपेतं // संसाराब्धेस्तरणतरि. | काकटपमाप्तोपदिष्टं / यत्कब्याणं त्विह परभवे तिष्टतां गवतां च // 31 // नास्तिकैनैव नाव्यं च।। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust