________________ टाका धर्मः तत्रास्ति शालिपुराख्यो / ग्रामो ऋरिजनालयः॥ बहिस्तस्य वटस्याधः / श्रांतत्वान्निषसाद सः | // 7 // दृष्टश्च तंत्र वास्तव्य-धान्यसारकुटुंबिना // पृष्टश्च सादरं गत्वा / यथा कस्मादिहागतः || g // गंतव्यं नवता कुत्र / किंवा नाम कुलं च ते // तेनानाणि महाजाग / बृहतीयं कथा 196 मम // 70 // युग्मं / कथं वा कथ्यते भद्र / स्वयमेव जनाग्रतः॥ स्थानव्रष्टेन सत्पुंसा। कुलशी. लादिकं निजं / / 71 // किंच-लहुति लहुं पुरिस / मेरुसमाणंपि दो अकज्जाइं॥ अप्पपसं. सा परनिंद-णा य पयपि किऊंता // 2 // श्रुत्वेदं धान्यसारोऽपि / मनस्येवं व्यचिंतयत् / / अहो वरकुलोत्पन्नः / कोऽप्ययं सुपुमानिति || 3 | तेनायं पृच्छ्यमानोऽपि / नाख्याति निजकां कथां // याकृत्यैवास्य मन्येऽयं / ऋतपूर्वमहोदयः / / 4 // यतः-यत्राकृतिर्गुणास्तत्र / गुणिनः संपदो ध्रुवं // श्रीमत्याझा परां प्राहु-स्ततो राज्यं महोदयः // 5 // लदाणानि च दृश्यते / यादृशान्यस्य विग्रहे // तैरस्य निश्चितं नावि / रिवैनवमुत्तमं // 6 // विचिंत्यैवं करे कृत्वा नीतस्तेन निजे गृहे // कृत्वा स्नानादिकं सर्व / नोजितश्च सगौरवं // 7 // दत्ता शालिपना क| न्या। शुमेऽति परिणाग्रितः // समर्पितं गृहं चैकं / चारुकुप्येन संयुतं // // दत्तं तस्मै तथा P.P.Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust