________________ धर्मः // 55 // ततो राज्ञे प्रणामार्थ / पौरलोकः समागतः // तेनापि च यथायोग / स सन्मान्य वि. सर्जितः // 26 // पृष्टाश्च निजका लोका / अमात्याद्या नियोगिकाः // यथा नो अत्र सर्वत्र / युष्माकं क्षेम वर्तते // 17 // कणसारकुमारो वा / युष्मानाश्रित्य कीदृशः॥ प्रजासु वापि कोहदः / श्रुत्वेदं तैः प्रजटिपतं // 27 // देव देवप्रसादेन / क्षेमः सर्वत्र वर्तते // कणसारस्तु निःशेष-गुणरत्नमहोदधिः // 55 // येन चिंतयता राज्यं / दुष्टलोकं निगृह्णता // रदता शिष्टलोकं च / गुणग्राही जनः कृतः // 60 // एवं पृष्ट्वा च दृष्ट्वा च / कृत्वापि च यथोचितं / / विसर्य च निजं लोकं / राजेंडोंतःपुरं ययौ / / 61 // यावच्च पश्यति तत्र / चंद्रकांतावलोकिता / विमनस्का विदीर्णागी / भूमौ विन्यस्तदृष्टिका // 6 // महामन्युनराकांता / सखेदा दुःखनिर्भरा // ध्यायं. ती किंचिदव्यक्तं / ब्रष्टमंत्रेव योगिनी // 63 / / युग्मं // ततः सा प्रनिता राझा / किमर्थ दुःखि. ता प्रिये // तवाझा खंडिता केन / सखेदा केन दृश्यसे // 64 // सा प्राह किमहं राजन् / कथा यामि तवाग्रतः॥ कथितं यत्तु नो कोऽपि / श्रधातुमपि शयति // 65 // राजाह किं तवानेन / यदि कथ्यं गणव मे // तथा तथा करिष्यामि / यथा ते जायते धृतिः // 66 // सा प्राद देव | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust