________________ 152 धर्मश्रेष्टिना प्रत्यपद्यत // 33 // शोजने तिथिनदात्रे / महा विहितोत्सवं // वृत्तं तयोः प्रमोदेन / / | पाणिग्रहणमंगलं // 35 // दत्ताश्च वजा तस्मै / वाजिनः स्पंदना गजाः // कोशश्च द्रव्यसंपूर्णः। प्रासादाश्च मनोहराः // 35 / / अथासौ कणसारोऽपि / विलसन् राजलीलया // सुदर्शनासुताराख्या संयुक्तो युक्तकारकः // 36 // राज्ञा च राजलोकैश्च / दृश्यमानः सगौवं // कुर्वन वंधुजनानंदं / कालं नयति नीति मान् // 35 // युग्मं // अन्यदा च निजे राज्ये / नृपतिस्तप्तिकारकं // कणसारं व्यवस्थाप्य / ययौ विजययात्रया // 30 // कणसारोऽपि तद्राज्यं / संपालयति नीतितः // उष्टानां निग्रहं कुर्वन / शि. ष्टानां पालनं तथा // 35 // एवं च राजलोकानां / संमतो रंजितप्रजः / / सर्वाण्यपि निरुत्सेको / राज्यकार्याणि चिंतयन् // 40 // राझोऽस्य वल्लनादेव्या / चंद्रकांतानिधानया // गवादगतया दृ. हो / नेत्रानंदविधायकः / / 1 / / युग्मं / / ततः सा चिंतयामास / तशुणादिप्तमानसा // अहो रूपमहो रूप-महो कांतिरहो गतिः // 4 // अहो देहस्य लावण्य–महो मधुरता गिरां // वा. | तायां श्रूयते कामो / मन्ये कामोऽयमेव हि // 43 // तदत्र यद्ययं कामी / गत्वा कामं न काम्य P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust