________________ धर्म- गतेषु त्रिषु मासेषु / तस्याजनि च दोहदः // यथा तंमुलदानेन / लोकं सुस्थीकरोम्यहं // 11 // | पृष्टया च तयाचष्ट / श्रेष्टिनः स विशेषतः // तेनापि पूरितस्तूर्ण / तुष्टा तारप्रजाजनि // 12 // ग न धानत प्रारभ्यः। श्रेष्टिनः संपदा सह // सर्वतोऽपि प्रवर्धते / कणा गर्नानुजावतः // 13 // 100 चिंतानंतरनिःशेष—पूर्यमाणसुदोहदा // सुखं सुखेन सा गर्न-मुवाह मुदितानना // 14 // मासानां नवकेऽतीते / साध सप्तदशाधिके / सासूत सुंदरं पुत्रं / सर्वलदाणसंयुतं // 15 // का. तिं च ततः पित्रा / महा बंधुभिः सह / / सर्वलोककृतानंदं / वोपनकमुच्चकैः // 16 // समये च कृतं तस्य / नाम स्वप्नानुसारतः // कणसार इति ख्यातं / महामहपुरस्सरं // 17 // अथासौ व. र्धते बालो / धात्रीपंचकलालितः // सार्ध कलाकलापेन / पुष्णानो वपुषः श्रियं // 17 / / कालेन यौवनं प्राप्तः / कामिनीजनमोदकं // श्रेष्टिपुत्री सुताराख्यां / परिणिन्ये च कन्यकां // 17 / / लुंजानस्य यथाकामं / कामनोगांस्तया सह / / गति प्रीतचित्तस्य / कणसारस्य वासराः // 10 // अथान्यदा समं मित्र-नानाक्रीडापरायणः // कणसारो ललन वाथ्यां / ददृशे राजकन्यया // // 21 // कामवेश्मनि गवत्या / सुदर्शनाख्यया. तदा // बालोकितश्व सस्नेहं / सादरं स्निग्धचक्षु Jun Gun Aaradhak Trust PP.AC.Gunratnasuri M.S.