________________ धर्म तव्यः सप्तदशभेदजिन्नः संयमः, समुन्मूलयितव्या रागादयः, निरोधव्यो हार्दतमःप्रसरः, किं बहुना? | निहंतव्योऽप्रमत्तचित्तैर्मोहमहावेताल इति, मृशयनाहारलालितं पालितं तावकं शरीरकं, अपर्या लोचितकारितकारिता हि महतेऽनर्थायेति. राजाह-जगवन्नंगीकृतं सर्व / कष्टजातं मयाधुना / / 17 विधायानुग्रहं देहि / शीघ्र जागवतं व्रतं / / 66 // वंदित्वा जुवनालोकं | ततः स्वगृहमागतः // प्रोक्तः सर्वोऽपि वृत्तांतः / प्रधानानां महीभुजां / / 67 // राजश्रीसंगवं पुत्रं / विजयं विश्वविश्रुतं // खराज्ये स्थापयामास / जानुप्रननरेश्वरः // 6 // सूरश्रीसंगवं सूरं / केरलाकुदिसंनवं / / सूरसेनानिधं पुत्रं / कलाकौशलशालिनं // 6 // // एणाचंद्राभिधं पुत्रमेणामुख्याः समुद्भवं // त्रयो मातामहे राज्ये / ह्यभिषिच्य विसर्जिताः // 70 // अन्यदपि यथायोग्यं / धर्मकर्म विवाय सः // निष्क्रांतो जुवनालोक-केवलिनः पदांतिके // 11 // त्रिनिर्विशेषकं // अागमाधिगमाज्जातो / गीतार्थो गतमत्सरः / / विज़हार महीपीठे / जानुप्रनमहामुनिः // 7 // प्रशमामृततृप्तात्मा / द मालंकृतविग्रहः // निर्ममो निरहंकारो / गतरागो जितेंद्रेयः / / 73 // सर्वजीवागयं दत्वा / तपस्त| प्त्वा मुच्चस्तरं // परिपाव्यामलं शीलं / विनाव्य वरजावनाः // 14 // विशुधसंयमस्थानो / हत्वा | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust