________________ 'धर्मः। लानि कलत्राणि / अहो तुव्यः समागमः // अनुकूलो विधिः पुंसां / किं कि यन्न करोत्यहो / // 40 // इत्येवं सर्वलोकेन / श्लाघ्यमानः पदे पदे // विवेश मंदिरं पैत्र्यं / राजमानो नृपश्रिया / // 41 // पूजयित्वा यथायोग्यं / लोकः सर्वो विसर्जितः // स्थितः सिंहासने राजा। प्रधानपरिखा. | रितः / / 45 // यदर्थ वयमायाता / यश्च मे हृदि वर्तते // शूरो विक्रमपालः / स किं जो नात्र दृश्यते // 43 // मंत्रिणोक्तं च किं तेन / मत्सरबन्नबुधिना // नाऽधन्यश्च जनो येन / देवदर्श नमर्हति // 4 // महेंडमातुलेनापि / राज्यश्रीखि दुर्लन्ना // राज्यश्रीकन्यका दत्ता / विस्तरेण विवाहिता // 45 // गुणानुरक्तनिःशेष-लोकमुध्धृतकंटकं // प्रणताशेषसामंतं / विनमन्मंत्रिमंडलं | // 46 // पालयतोऽप्रयासेन | रम्यं राज्यचतुष्टयं // कामनोगान् यथाकामं / भुंजानस्यानुवासरं // // 7 // संसारसुखसंदोद-मममूर्तमहात्मनः // संजातयोग्यपुत्रस्य / गतः कालः कियानपि // // 4 // त्रिनिर्विशेषकं // अन्यदा जुवनालोक-केवव्यत्र समागतः // वंदनार्थ गतो राजा / प्रतैनांगरैः सह ॥णा | केवली कथयामास / धर्म दुर्गतिनाशनं // हितश्व सर्वजीवानां / सर्वजंतुसुखावहं / / 50 // अथ P.P.AC.Gunratriasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust