________________ 150 धर्मः। झस्तेनापि रुष्टेन / सर्व चेतसि धारितं // 30 // हितीयेऽह्नि प्रजातेऽपि / सवयस्यः समागतः / / का सगासिंहासनारूढे / राझि राजमुतस्ततः // 31 // प्रणतः पादयोनत्या / रूदादृष्ट्यावलोकितः / / | निषसादोचितस्थाने / नणितश्च महीनुजा // 3 // केन जीवसि रे मिंज। स प्राह निजकर्मणा // राजाह मुंच में गेहं। फलं भुंदव स्वकर्मणां // 33 // श्रुत्वेदं कर्कशं वाक्यं / सनामध्येऽपमानितः // प्रणम्य च पितुः पादौ / सन्नामध्याइिनिर्गतः // 34 // हे वाससी च मुखां च / गृहीत्वा निर्गतो गृहात् // गत्वान्निमानतो चुक्ते / योजनानां चतुष्टयं // 35 // निजाश्रुस्नेहसन्मित्रं / मानव्यंजनसंयुतं // भुक्तं नदीतटे तेन / निदयाहतजोजनं // 36 // वज्रेणेवापमानेना-मानेन व्याहतो हृदि // पपात श्रांतसर्वांगः / सहकारतरोरधः // 30 // . . .. अवांतरे समायाता / स्त्री जानुश्रीसमप्रजा // जानुप्रनस्य सुप्तस्य / पादप्रदालनोद्यता / / 3 / / प्रबुछोऽसौ करस्पर्शा-इडितश्च समंत्रमः // मातरं च पुरो भूत्वा / प्रोवाच विहितांजलिः // 3 // मातः कुतः समायाता / देवयं गतिं गता // अतर्कितसुधासार-समान प्रियदर्शने // 40 // त. | तः शोकजराक्रांत-कंठयोत्कंठया तया // कृत्वा कुमारमुत्संगे / सदुःखं रुदितं तदा // 41 / / कथं / Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.