________________ टीका धर्मः | ग्राह तृणवत्त्यत्वा। खं राज्यं मेदिनीपतिः // शिदादयानुसारेण / कृत्वानुष्टानमुत्तमं // 16 // केवलं शीलमासेव्य / समजावव्यवस्थितः // कृतसंलेखनो धीरो / धर्मारामरतः सदा // 17 // सं. प्राप्य केवलं ज्ञानं / लोकालोकप्रकाशकं // सर्वाहारनिरोधेन / विधायानशनक्रियां // 17 // शु. 155 क्वध्यानेन निर्दग्ध-सर्वकर्मेधनो मुनिः // चतुर्गतिविनिर्मुक्तः / पंचमी गतिमाश्रितः // 15 // कु. लकं / / इति धूपपूजाकथानक परिसमाप्तं // . धूपपूजाफलं प्रोक्तं / दृष्टांतेन सविस्तरं / / दीपपूजाफलं वच्मि / संप्रत्यवसरागतं // 1 // स. मस्ति सकलदीप-मध्यस्थश्च स्वशोजया // दीपानामुपरीवोच्चै-जंबूद्दीपो व्यवस्थितः ॥२॥त. त्रापि जारते क्षेत्रे / पशिः खमैर्विराजिते / समस्ति मध्यम खमं / धर्मधाम गुणाश्रयं // 3 // मगधाजनपदस्तत्र / जिनमंदिरराजितः // गुणग्राही गुणाधारो | धर्मवान धार्मिकप्रियः // 4 // परदो षग्रहे मूको। जात्यंधो दोषदर्शने // सुशीलो वृधसेवी च / नरवर्गो विराजते // 5 // युग्मं / / नार्यो यत्र स्वसौंदर्यै-ईपयति सुरस्त्रियः॥ पुष्पेषोः साधनीभूतै-विभ्रमैरपि केवलैः // 6 // वि. काररहिता लक्ष्मी-यौवनं विनयान्वितं // श्रुतं प्रशमसंयुक्तं / शौर्य दात्या विभूषितं // 7 // अ. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust