________________ धर्म | त्रियोऽनवत् // 7 // युग्मं // संपन्नोचितसंतानः / सर्वलोकमनःप्रियः // एकातपत्रमत्रस्तो / रा. | म ज्यं चुक्ते निराकुलः // 3 // अन्यदा च समासीनः / सनामंडपविस्तरे // अमात्यमंत्रिसामंत नटलदासमाकुले // 4 // काननाच समागत्य / नरेण जाणतो नृपः // दिष्ट्या त्वं वर्धसे देव / तवोद्याने मनोरमे // 55 // संतोषप्तागरा नाम / सूरयः श्रुतसागराः॥ नानातिशयसंपन्ना / बहु. शिष्याः समागताः // ए६ // त्रिनिर्विशेषकं // तत् श्रुत्वा रंजितो राजा / दत्वास्मै पारितोषिकं // चचाल पादचारेण / वंदनार्थ बलान्वितः / / एg // गत्वा प्रदक्षिणीकृत्य / वंदित्वा भक्तियोगतः / / नचितासनमासीनो / धर्म शुश्राव पार्थिवः // ए // संप्राप्यावसरं राजा / पप्रब निजसंशयं // क थं मे वर्धते लक्ष्मीः / कथ्यमाझाकरो जनः / / ए // निजगृहोपविष्टस्या-कृतदमस्य मे सदा / / समानीतोपदश्वापि / कथं नेमुर्धराधिपाः॥ 400 // कथ मे वल्लभोऽत्यंत / सुहृन्मलयसुंदरः // स. विशेषमनीया मे / केन वा जयसुंदरी // 1 // अवधिज्ञानविज्ञात-पूर्वजन्मपरंपरः // राजानं प्र. त्युवाचेदं / सूरिः संतोषसागरः // 2 // इतस्तृतीयपर्याये / वाराणस्यां दिजात्मजः // शंखचूमाजि| धो नव्यो-ऽनवद्भार्या च दुर्गिला // 3 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust